आजपावेतो मा. अटलबिहारी वाजपेयी हे नांव या पृथ्वीतलावरील चालत्याबोलत्या व्यक्तीचे होते. एका लेखकाचे, कवि ह्रदयाच्या पत्रकाराचे, तेजस्वी राजकीय कारकीर्द करणाऱ्या कर्तृत्ववान व्यक्तीचे, समाजासाठी आपले आयुष्य समर्पित करणाऱ्या मृदू व्यक्तीत्वाचे, प्रसंगी कठोर निर्णय घेणाऱ्या धीरोदात्त पुरूषाचे नांव होते. दशसहस्त्रेषुच काय पण शतसहस्त्रेषु वक्तृत्व प्राप्त असलेल्या सरस्वतीपुत्राची वाणी त्यांच्या मुखातून नवरसांनी आपले रूप घेवून येत असे. आज ते आपल्यात नाही.
त्यांची भूमिका त्यांच्या शब्दांत -
क़दम मिला कर चलना होगा
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
आणि आज तर या प्रसंगी आम्हाला, आमचे संत तुकाराम महाराज आम्हाला आठवतात -
आम्ही जातो आपुल्या गावा ।
आमचा राम राम घ्यावा ॥१॥
आमचा राम राम घ्यावा ॥१॥
तुमची आमची हे चि भेटी ।
येथुनियां जन्मतुटी ॥२॥
येथुनियां जन्मतुटी ॥२॥
आतां असों द्यावी दया ।
तुमच्या लागतसें पायां ॥३॥
तुमच्या लागतसें पायां ॥३॥
येतां निजधामीं कोणी ।
विठ्ठल विठ्ठल बोला वाणी ॥४॥
विठ्ठल विठ्ठल बोला वाणी ॥४॥
रामकृष्ण मुखी बोला ।
तुका जातो वैकुंठाला ॥५॥
तुका जातो वैकुंठाला ॥५॥
कै. अटलजी, शेवटी आमचे हेच सांगणे - भगवान श्रीकृष्णाची वाणी लक्षात ठेवा, आमच्यासाठी, या तुमच्या समाजपुरूषासाठी, जित्याजागत्या राष्ट्रपुरूषासाठी आणि पुन्हा या आमच्यात, हे वचन लक्षात ठेवून कारण तुमचे काम अजून संपलेले नाही.
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भारतीय जनता वाट पहात आहे.
१६. ८. २०१८
No comments:
Post a Comment